गुरु की वाणी के एक शब्द का उल्लघंन भी मनुष्य को नरक का गामी बना सकता है*


सुसनेर। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव द्वारा मध्य प्रदेश के निराश्रित गोवंश के संरक्षण हेतु सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में भारतीय नूतन संवत 2081 से घोषित "गोवंश रक्षा वर्ष" के तहत जनपद पंचायत सुसनेर की समीपस्थ ननोरा, श्यामपुरा, सेमली व सालरिया ग्राम पंचायत की सीमा पर मध्यप्रदेश शासन द्वारा स्थापित एवं श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा द्वारा संचालित विश्व के प्रथम श्री कामधेनु गो अभयारण्य मालवा में चल रहें एक वर्षीय वेदलक्षणा गो आराधना महामहोत्सव के 233 वे दिवस पर स्वामी गोपालानंद सरस्वती महाराज ने नारी के सतीत्व के बारे बताते हुए कहां कि एक ऋषि नारी जो वन में रहकर भी भगवान श्रीराम की पत्नी सीताजी को पत्नी व्रत धर्म के बारे में बता रही है और एक राजा की पत्नी मां जानकी गुरु भाव से उसी स्वीकार कर पतिव्रत धर्म पालन की शिक्षा ग्रहण कर रहीं है ।।

महाराज जी ने गुरु की महिमा बताते हुए कहां कि दीक्षा गुरु तो एक ही होते है, जिनसे हमें परमात्मा को पाने के लिए मंत्र प्राप्त होती है ओर वे ऐसे गुरु हितैषी जिनकी वाणी का एक शब्द भी उल्लघंन करना मनुष्य के नरक गमन के लिए प्रयाप्त होता है अर्थात किसी को नरक जाना है तो उसे कुछ करने की जरुरत नहीं है बल्कि गुरु की आज्ञा का उल्लंघन कर लो नरक का रास्ता एकदम क्लियर मिल जायेगा। साथ ही महाराज जी ने बताया कि शिक्षा गुरु अनेक हो सकते है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण मान अनुसूया जी के पुत्र भगवान दत्त के 24 गुरु थे और चाणक्य ने भी चाणक्य नीति में 24 गुरु की बात कही है । इसी प्रकार महर्षि बाल्मीकि ने मां अनुसूया जी को अपना गुरु बनाकर गर्भावस्था संबंधित सारी शिक्षा प्राप्त की थी और वनवास के दौरान माता सीता और राम जी जब चित्रकूट में महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे, तब वहां देवी अनुसूया ने सीता जी को पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी थी. अनुसूया ने सीता जी को बताया था कि आदर्श पत्नी को अपने पति के लिए कैसा व्यवहार करना चाहिए और गृहस्थ जीवन को कैसे संवारना चाहिए. अनुसूया की इस शिक्षा से सीता जी ने रावण की कुदृष्टि को नाकाम किया और अग्नि परीक्षा में भी सफल रहीं.है ।

महाराज जी ने बताया कि आगामी 11 दिसम्बर को गीता जयंती पर गो अभयारण्य में भव्य उत्सव मनाया जायेगा और 15 दिसम्बर को कल्पगुरु भगवान दत्तात्रेय जी का प्राकटीकरण उत्सव मनाया जाएगा।

स्वामीजी ने आगे बताया कि बिना गायमाता के कोई भी सुखी नहीं हो सकता अर्थात देवता भी बिना गायमाता के सुखी नहीं रह सकते क्योंकि गायमाता की घृत से किए गए हवी से ही देवता प्रसन्न होते है और जब गोमाता नहीं रहेगी तो देवता कैसे प्रसन्न होंगे और देवता प्रसन्न नहीं होंगे तो फिर सभी दुःखी रहेंगे इसीलिए सभी की प्रसन्नता के लिए गोमाता का होना जरूरी है ।


*233वे दिवस पर चुनरीयात्रा महाराष्ट्र के बुलडाना जिले की ओर से * 
 एक वर्षीय गोकृपा कथा के 233 वें दिवस पर चुनरी यात्रा महाराष्ट्र के सेगांव से रिखब चन्द पीयूष जी बाफना ने अपने परिवार की और से सम्पूर्ण विश्व के जन कल्याण के लिए गाजे बाजे के साथ भगवती गोमाता के लिए चुनरी लेकर पधारे और कथा मंच पर विराजित भगवती गोमाता को चुनरी ओढ़ाई एवं गोमाता का पूजन कर स्वामी गोपालानंद सरस्वती महाराज से आशीर्वाद लिया और अंत में सभी ने गो पूजन करके यज्ञशाला की परिक्रमा एवं गोष्ठ में गोसेवा करके सभी ने गोव्रती महाप्रसाद ग्रहण किया।