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कलश यात्रा के साथ सप्त दिवसीय श्रीमद गौ भागवत कथा का शुभारंभ


श्रीमद भागवत भगवान की देह है, तो गोमाता भगवान का प्राण है*- स्वामी गोपालानंद सरस्वती

पुष्कर/15 सितम्बर, विश्व प्रसिद्ध प्रजापति ब्रह्मा जी महाराज की पुण्य भूमि तीर्थों के राजा तीर्थराज पुष्कर के अजमेर रोड पर पुराने चुंगी नाके के पास स्थित शीतल आश्रम में देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल मंगल परिवार के मुख्य यजमानतत्व में 31 वर्षीय गो पर्यावरण एवं अध्यात्म चेतना पदयात्रा के प्रणेता एवं गोपाल परिवार संघ के संरक्षक ग्वाल सन्त पूज्य स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती महाराज के मुखारविंद से सप्त दिवसीय श्रीमद गो भागवत कथा का शुभारंभ नव खंडिय बालाजी मंदिर रामधाम पुष्कर से कलशयात्रा के साथ आज आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी सोमवार को शुभारंभ हुआ ।

श्रीमद गो भागवत कथा के प्रथम दिवस पर ग्वाल सन्त पूज्य स्वामी गोपालानंद सरस्वती जी महाराज ने बताया कि लोग तो भगवती गंगा माता के तट पर भागवत कथा करवाने जाते है लेकिन विश्व प्रसिद्ध तीर्थराज पुष्कर में तो साक्षात् गंगा मैया के तट पर निवास करने वाला मंगल परिवार अपने पित्रों एवं सर्व विश्व के कल्याण के लिए तीर्थराज पुष्कर में श्रीमद गो भागवत कथा करवाने का शौभाग्य प्राप्त किया है क्योंकि तीर्थराज पुष्कर वास्तविक ब्रह्मलोक ही है ।

स्वामीजी ने बताया कि श्रीमद भागवत कथा भगवान की देह है तो भगवती गोमाता भगवान का प्राण है क्योंकि भगवान ने स्वयं कहां है कि गोमाता मेरे अन्दर बसती है अर्थात गोमाता भगवान का प्राण है यानि भागवत का पाठ करना एवं गोमाता का दान दोनों का फल बराबर है इसलिए गोमाता की सेवा का फल भागवत पाठ के फल के बराबर ही है ।

स्वामी जी ने आगे बताया कि जीवन में अधिक से अधिक चर्चा साधुओं से होनी चाहिए क्योंकि भक्ति का भाव साधुओं के सत्संग से ही प्राप्त होता है और श्रीमद भागवत कथा में स्पष्ट उल्लेख भी है कि भक्ति के बिना ज्ञान एवं वैराग्य नहीं हो सकता अर्थात हमारे हृदय में निर्मल भक्ति नहीं होगी तब तक ज्ञान नहीं मिल सकता और भक्ति प्राप्त करने का सबसे बड़ा माध्यम भगवती गोमाता की सेवा ही है,जिसका हमारे धर्म ग्रंथों में उल्लेख भी है कि अगर हमारे जीवन में गो के प्रति सदभाव, सेवा एवं समर्पण नहीं होगी तो भगवान कभी नहीं मिल सकता क्योंकि वैराग्य का मतलब मन में राग का नहीं होना है और राग नहीं होगा तो द्वेष नहीं रहेगा अर्थात राग एवं द्वेष दोनों की जोड़ी है इसलिए राग नहीं होगा तो द्वेष रहेगा ही नहीं और इस संसार में जो कुछ है वह हमारा नहीं है यही भाव ज्ञान है ।

प्रथम दिवस की कथा में संन्यास आश्रम के महंत बीबीतानन्द जी महाराज,संजय दरियाव रामस्नेही आश्रम से हरजीराम जी महाराज ,श्री कृष्ण निवास आश्रम जयराम जी महाराज जी रामधाम से रामदास जी महाराज अगत नाथ जी एवं मध्यप्रदेश के हरदा जिले की गुप्तेश्वर गोशाला , पुष्कर की सिद्धेश्वर गोशाला एवं पुष्कर गोशाला समिति के पदाधिकारियों सहित सैकड़ों गो भक्तों एवं माता बहिनों ने भाग लिया अन्त में यजमान परिवार ने श्रीमद भागवत की आरती की ।