सुसनेर। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव द्वारा मध्य प्रदेश के निराश्रित गोवंश के संरक्षण हेतु सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में भारतीय नूतन संवत 2081 से घोषित गो रक्षा वर्ष के तहत जनपद पंचायत सुसनेर की समीपस्थ ननोरा, श्यामपुरा, सेमली व सालरिया ग्राम पंचायत की सीमा पर मध्यप्रदेश शासन द्वारा स्थापित एवं श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा द्वारा संचालित विश्व के प्रथम श्री कामधेनु गो अभयारण्य मालवा में चल रहें एक वर्षीय वेदलक्षणा गो आराधना महामहोत्सव के 223 वे दिवस पर स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती ने कहां कि पद्मजा नाइडू (1900 - 2 मई 1975[1]) भारतीय राजनीतिज्ञ सरोजिनी नायडू की सुपुत्री थीं। उन्होने अपनी माँ की तरह भारत के हितों के लिए खुद को समर्पित कर दिया था। केवल इक्कीस वर्ष की उम्र में वे भारत की राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश कर कई थीं, उन्होने विदेशी सामानों के बहिष्कार करने और खादी को अपनाने हेतु लोगों को प्रेरित करने का संदेश दिया और समर्पित अभियान में शामिल हुई। वे 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल भी गई। स्वतन्त्रता के पश्चात वे पश्चिम बंगाल की राज्यपाल बनीं। उन्होने आधी सदी से भी ज्यादा सार्वजनिक जीवन जिया, इस दौरान वे रेड क्रॉस से भी जुड़ीं और 1971 से 1972 तक वे इसकी अध्यक्ष भी रहीं।
सुसनेर की समीपस्थ ननोरा,श्यामपुरा, सेमली व सालरिया ग्राम पंचायत की सीमा पर स्थित विश्व के प्रथम श्री कामधेनु गो अभयारण्य मालवा में निराश्रित गोवंश के संरक्षण हेतु आमजन में गो सेवा की भावना जागृत करने के लिए विगत 9 अप्रेल 2024 से चल रहें एक वर्षीय वेदलक्षणा गो आराधना महामहोत्सव के 46 वें दिवस पर गोकथा में पधारे श्रोताओं को ग्वाल सन्त गोपालानन्द सरस्वती महाराज ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए आद्य पत्रकार देवऋषि नारद जी के जीवन के बारे में बताया कि आज ही के दिन जयेष्ठ कृष्ण प्रतिपदा को ब्रह्मा जी के मानस पुत्र विष्णु भगवान के 24अवतारों में से एक अवतार के रूप में जन्म लिया ।
स्वामीजी ने बताया कि नारद जी की दो विशेषताएं प्रथम अखंड कीर्तन , नारायण नारायण ,श्रीमन नारायण एवं दूसरा तीर्थाटन एवं देशाटन जिसके माध्यम से नारद जी ने जन जन तक भक्त एवं भगवान की समस्याओं के समाधान में अपनी अहम भूमिका निभाई और इसी भूमिका के कारण देवऋषी नारद आद्य पत्रकार के रूप में जाने जाते है । नारद जी गोकृपा से ही देवऋषि नारद हुए ।
पूज्य महाराजजी ने जयपुर विराजित भगवान गोविन्द देव जी के उद्गम के बारे में बताते हुए कहां कि भगवान किस रूप में आ जाएं कह नहीं सकते इसलिए आपको जो भी मिले उसका सम्मान करें क्योंकि वह गोविंद भी हो सकते है ।इसलिए हर बार खुद की सुविधा मत देखो ,दूसरों की सुविधा का भी ध्यान रखो क्योंकि पता नहीं भगवान किस रूप में आ जाएं । ब्रज के रूपगोस्वामी को गोमाता की कृपा से ही भगवान गोविन्द देव मिले है और अकबर जैसे मुगल आतताइयों से बचाने के लिए गोविन्द देव जी ब्रज से कामां पधारे और वहां से आमेर किले में विराजित हुए और बाद में जयपुर के राजा जयसिंह ने जयपुर बसाया और जयमहल में एक भव्य मंदिर बनाया और भगवान गोविंददेव जी के आगमन के बाद ही जयपुर में हर घर में गोसेवा होने लगी ।
स्वामी जी ने गोव्रत के बारे में बताते हुए कहां की गोमाता के दूध,दही,घी, से प्रसाद बनाकर भगवान का प्रसाद एवं स्वयं खुद के भोजन में गो व्रत होना चाहिए, इसलिए *जीवन में भगवत भक्ति चाहिए तो गोव्रती बनिए* । एक वर्षीय वेदलक्षणा महामहोत्सव में गोव्रती महा प्रसादी के माध्यम से आपमें भगवती भक्ति का भाव जगे इसी निमित्त आपको गोव्रती प्रसादी खिलाई जा रही है । और मनुष्य ने अपने जीवन में *गो, गोविन्द एवं गुरु इन तीनों में से कोई एक अपने साथ रखा तो कन्हैया के मिलते देर नहीं लगेगी